माँ अम्बे जगदंबे सुन लो सबकी यही पुकार !
सकल विघन दूर हो जाये ,हो कोविड का हार !!
तुझसे ही माँ आस लगाए बैठा ये संसार,
एक बार फिर से कर दो माँ जीवन यह गुलज़ार !!
तुम ममता की मूरत अम्बे तुमसे मिले दुलार,
दर पे तेरे आन खड़े हैं अर्ज़ सुनो सरकार !!
बिन तेरे कौन सुने माँ दुखी जनो की पुकार,
तेरे ही करुणा से अम्बे जगत का कारोबार !!
फिर गुलशन रौशन हो जाये, हो तमस की हार,
तेरी कृपा नहीं गर अम्बे जीवन है बेज़ार !!
मन के अंध तमस में बिहरो अच्छे उठें विचार,
हे माँ पर पीड़ा को समझूँ, मिले कलम को धार !!
रचना - जय प्रकाश ,जय १० अक्टूबर २०२१
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