चाँदनी पर शबाब आता है !
चाँद जब ख़ुल के मुस्कराता है !!१
शराब ख़ुद जब पीने लगती है ,
आदमी जीते जी मर जाता है !!२
अपनी ज़ानिब देखता भी नहीं ,
उसका जब काम निकल जाता है !!३
अंधेरे घर से फिर निकलते कहाँ ,
सोया सूरज जब जाग जाता है !!४
मौत उसको नहीं डराती है ,
मौत से आँख जो मिलाता जाता है !!५
हमें अपनी ख़बर नहीं रहती ,
जब वो शिद्दत से याद आता है !!६
मुफ़लिसी कैसी सज़ा है यारों,
ग़रीब जीता ना मर पाता है !!७
सच बताने से कब घबराता है !
भले ही आईना टूट जाता है !!८
रचना -जयप्रकाश ,जय १३ अप्रैल २०२१
शबाब -यौवन ,ज़ानिब-तरफ़
शिद्दत से - तीब्रता से , मुफ़लिसी -ग़रीबी
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