क्या ये मुम्किन सूर्य पश्चिम से निकल सकता है !
आदमी लेकिन तक़दीर बदल सकता है !!
किसी का सर पे अगर हाथ नहीं है उसके,
मज़ाल है की वो लोगो को कुचल सकता है !!
एक छोटी सी भूल पड़ जाती है बहुत भारी,
एक लम्हा यहाँ शदियों को निगल सकता है !!
इस कदर आग अब दिल में लगी है मेरे,
कि मेरे अश्कों से तेरा हाथ भी जल सकता है !!
वो जो चाहे तो क्या कुछ नहीं हो सकता है,
वो जो चाहे तो फ़ौलाद पिघल सकता है !!
रचना -जयप्रकाश ,जय ०८ अक्टूबर २०२१
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