Saturday, August 21, 2021

!! मकाँ शीशे का एक बनाऊँ क़्या !!



 





PART- 1 / Version-1.2

अकेले   मैं   ही  सब   वादे   निभाऊं  क्या !  
बता   क्या   क्या   करूँ  मर    जाऊँ  क्या !!

दाग़   चेहरे      पर      नजर    आता      है, 
कह   तो    मैं   आईना    दिखाऊं      क्या !!

खुदा   बनने   की   कोशिश  कर  रहा  है ,  
हस्र    के    क़िस्से    कुछ    सुनाऊँ   क्या !!

दिल  को जो  शाद , रूह को  पुरनूर करे, 
एक   ग़ज़ल    ऐसी    भी   बनाऊँ    क्या !! 

पत्थरों      तुम      अगर     इज़ाज़त    दो  ,     
मकाँ    शीशे    का     एक   बनाऊँ  क़्या !!

फ़ायदा   ख़ामोशी   का  उठाने     वालों , 
जुबाँ  खोलने  की  हिम्मत  जुटाऊं  क्या !!

इश्क   ख़ता    है  गर  , तो    इतना  बता  ,
इन आँखों  के समंदर में  डूब जाऊँ क्या !!

रचना -जयप्रकाश ,जय २२ अगस्त २०२१ 

 


 

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