ऐ जिन्दगी तूने ये कैसा खेल खेला !
नगर सब पड़े सूने और मरघटों पर मेला !!१
यूँ तो जीना मरना नई बात नहीं है,
लेकिन इस क़दर न था दुश्वारियों का रेला !!२
पहले न कभी ऐसी तस्वीर हमने देखी,
पहले न कभी कोई खेल ऐसा खेला !!३
यूँ तो बड़े मंज़र देखें हैं मुश्किलों के,
है नींद उड़ा रखा इस दौर का झमेला !!४
तन्हाईयों का मंज़र पहले भी था मग़र,
पर आदमी ना था इतना कभी अकेला !!५
ऐ मौत चाहे कितना तू आके सितम ढाले,
रुकने नहीं देंगे हम यहाँ जिंदगी का मेला !!६
-जयप्रकाश ,जय २१ अप्रैल २०२१
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