बेगुनाहों पे मगर जुर्म बरक़रार है !!१
जलाया शहर जो ज़रूर जुर्म था उसका ,
जिसने साजिश थी रची असली गुनहगार है !!२
नींद और चैन दोनों ही उड़ा है उनका ,
शहर से गांव तलक जिस कदर ललकार है !!३
ना झुका है वो आगे ना झुकेगा शायद ,
ये और कुछ नहीं झूठा सब प्रचार है !!४
दोनों ही ज़िद पे अड़े हैं अब बच्चों की तरह ,
बढ़ रहा रफ़्ता रफ़्ता और तकरार है !!५
रास्ते रोकने के ढंग अनोखे है बड़े ,
सड़क पर कील - तारों की अब दिवार है !!६
जो बात करने में भी शर्त लगा देते हों ,
ऐसे लोगो से बात करना भी बेकार है !!७
ये जंग जीत के ही अब घऱों को लौटेंगे ,
अहिंसा से बड़ा कोई नहीं हथियार है !!८
रचना -जयप्रकाश ,जय ०४/०२/२०२१
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