उसकी मुझ पर बड़ी मेहरबानी रही !
मेरी हर एक मुकम्बल कहानी रही !!
देखो ऐसा भरोसा जहर पी गई ,
मीरा ऐसी किसन की दीवानी रही !!
अपने वादे से उसको मुकरना ही था,
बात सारी की सारी ज़ुबानी रहीं !!
ज़ख्म खाये जिगर पर कुछ इस तरह,
दर्द की जिस्म पर बाग़वानी रही !!
एक तरफ़ मुश्कियें वो बढ़ाता रहा,
एक तरफ़ सारी दुनियाँ दीवानी रही !!
हाथ कंधें पर रख बड़ी हिम्मत दिया,
दुश्मनी जिनसे अपनी पुरानी रही !!
रचना -जयप्रकाश ,जय १४ सितम्बर २०२१
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