कौन कहता है अपने पैरों में जंज़ीर न थी !
और ऐसा भी नहीं हाथों में शमशीर न थी !!
गुजारीं हमने गुलामी में कई हैं सदियाँ,
क्यूँकि पहले यहॉँ एक ही ज़ागीर न थी !!
गलत सही के दरमियाँ फासले थे बहुत,
आज की तरह झूठ बोलती तस्वीर न थी !!
भले विज्ञान था हम पर मेहरबाँ ना बहुत,
मग़र ज़मीन ये इतनी कभी फ़कीर न थीं !!
रचना -जयप्रकाश ,जय २९ अगस्त २०२१ [ PART-1]
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