Sunday, August 29, 2021

!! पैरों में जंज़ीर न थी !!





कौन कहता  है अपने पैरों में जंज़ीर न थी  !
और  ऐसा भी नहीं हाथों में शमशीर न थी !!

गुजारीं हमने  गुलामी  में कई   हैं   सदियाँ, 
क्यूँकि  पहले  यहॉँ  एक  ही  ज़ागीर न थी !!

गलत  सही  के  दरमियाँ  फासले थे बहुत, 
आज की तरह  झूठ बोलती तस्वीर न थी !! 

भले विज्ञान था हम पर मेहरबाँ  ना  बहुत,   
मग़र ज़मीन ये इतनी  कभी फ़कीर न थीं !!
रचना -जयप्रकाश ,जय २९ अगस्त २०२१ [ PART-1]




 

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