ख़र्चे दिन पर दिन और बढ़ रहे हैं !
अभी बच्चे हमारे पढ़ रहे हैं !!
दिन अच्छे बस आने वाले हैं,
कहानी लोग फिर से गढ़ रहे हैं !!
उसने फिर वादा किया है ऐसा ,
चने के झाड़ पर सब चढ़ रहे हैं !!
उसने देखा बस क़त्ल करते हुए,
सभी इल्ज़ाम उसपे मढ़ रहे हैं !!
बनायें घर कहाँ जाये परिंदे,
नगर उनके भी अब उजड़ रहे हैं !!
तुम्हारा हाथ मेरे सर पे जब से,
जमाने की नज़र में गड़ रह हैं !!
तरस आता है देख बच्चों को अब ,
मोबाइल पर बिचारे पढ़ रहे हैं !!
रचना -जयप्रकाश ,जय ११ अगस्त २०२१
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