!! थप्पड़ से डर नहीं लगता !! PART-2
वक्त बदला है किस रफ़्तार से !
हाथ धो बैठे हैं संस्कार से !!
शुकून काश मिला करता गर,
रोज ले आते घर, बाज़ार से !!
एक चेहरे पर कितने चेहरे हैं,
कभी पूछो अपने क़िरदार से !!
जहाँ सुई का काम होता है,
काम चलता नहीं तलवार से !!
जीत का जश्न मनायेगा वही ,
सबक लेगा जो अपनी हार से !!
जब से कम्बख्त कोविड आया है,
रौनक रूठी रूठी सी है बाज़र से !!
उन्हें थप्पड़ से डर नहीं लगता,
डर लगता है जिन्हे प्यार से !!
रचना -जयप्रकाश ,जय १५ जुलाई २०२१
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