कैसा है ये निज़ाम कैसी ये निगेहबानी !
रघुबर तेरे शहर का बदला है हवा पानी !!
ख़ुदा से भी बड़ा यहाँ अब पैसा हो गया है ,
जिसके लिए दी जा रही ज़मीर की कुर्बानी !!
परवरदिगार तेरा अब नाम लेके दुनियाँ ,
इंसानियत को कर रही है रोज़ पानी पानी !!
उस काम में कभी बरक़त नहीं होती 'जय' ,
होती है जहाँ पर दौलद की बस रवानी !!
शुक्र मनाएं वो जो भी अभी हैं जिन्दा ,
उन पर जरूर है क़ुदरत की मेहरबानी !!
ये जिंदगी मिली क्यूँ असली सवाल ये है ,
उनको मिला जबाब पाने की ज़िद जो ठानी !!
ये राज-ए-जिंदगी जिसने भी यहाँ जानी ,
लगने लगेगी है मौत फ़िजूल की कहानी !!
रचना -जयप्रकाश ,जय २० जून २०२१
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