क़ुबूल करने में कैसी अब हैरानी है !
ये दुनियाँ किसी और दुनियाँ का काला पानी है !!
सज़ा लगती है जिंदगी किसी गुनाह की अब ,
ख़ुदाई इस ज़मी पर सिर्फ़ एक कहानी है !!
आदमी ना हुआ जैसे कोई खिलौना है ,
ज़मी के आँसू उस निज़ाम की मनमानी है !!
गर तेरे बस में तो, बेबस नज़र आता क्यूँ है,
मेरे मालिक बता कैसी ये निगेहबानी है !!
दुहाई दे रहे सब लोग आज सिस्टम का ,
शर्मसार हो रहा गंगा का भी अब पानी है !!
किसी को देता है तो देता चला जाता है,
किसी को भूखा मारने की भी तो ठानी है !!
बिना जाने बगैर मानना गुनाह है 'जय' ,
मानने की मगर दुनियाँ यहाँ दिवानी है !!
जमीं की मिट्टी कितना भी सोना उगले ,
जिंदगी लेकिन सूरज की मेहरबानी है !!
रचना !! जयप्रकाश ,जय !!१६ मई २०२१
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