चेहरे बयां करते हैं, दिलों का फ़साना !
बुज़ुर्ग हों जहाँ हँसते, है अमीर घराना !!
पैसा ही बन गया है , सबसे बड़ा ख़ुदा,
बदला है किस क़दर, कम्बख्त ज़माना !!
संभाले नहीं संभलता उनसे खुद अपना घर,
और ज़िद लिए बैठे हैं, है दुनियाँ को दिखाना !!
तारों पर बस्तियाँ बसाने की ज़िद तो ठीक,
जमीं पर तो बना लो पहले,घर और ठिकाना !!
दरिया में रह के प्यास बुझती नहीं है 'जय'
ऐसा कुछ आजकल , जिंदगी का फ़साना !!
मरने से भला कौन, जो इंकार किया है ,
अच्छा नहीं लगता मग़र बेमौत मर जाना !!
सच जानना जितना कठिन होता है दोस्तों ,
आसान उतना ही यहाँ अफ़वाह फैलाना !!
आपदा में अवसर की है तलाश ज़ारी ,
भूले नहीं हैं लोग आज भी फ़ायदा उठाना !!
रचना !!जयप्रकाश ,जय !!१४ मई २०२१
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