Thursday, April 29, 2021

!! गुलज़ार हर मंज़र कर दे !!









ये ख़ुदा सुकून  दिलों को  फिर  मयस्सर कर दे !
या  धड़कते  हुए   दिलों  को भी  पत्थर  कर दे !!१ 

दर्दे  अहसास  से  इस,  सबको  रिहाई   दे   दे, 
या  की  एक साथ, सब  हिसाब बराबर कर दे !!२ 
जी  के मरने  से बेहतर, की मर  ही जायें
'जय' 
यही  गर जिंदगी,  बेहतर  है की पागल कर दे !!३ 

सबक़  सिखाने  का  ये  कौन  सा   तरीका  है, 
फिर से उठ थी ना सकें ऐसा  ना घायल कर दे !!४ 

रहीम   होने   के    दावे   क्या   सभी   झूठे   हैं , 
अगर  नहीं   तो   हालत  जल्द   बेहतर  कर दे !!५ 
एक  इशारे  पे तेरे  क्या से  क्या  हो  सकता है,  
इल्तिज़ा तुझसे  गुलज़ार  फिर   मंज़र   कर दे !!६ 

जहाँ  प्यासा  नहीं   कोई  वहां  बरसना  क्या, 
कभी  सहरा पर अपनी शोख-ए-नज़र कर दे !!७ 
इल्तिज़ा -प्रार्थना, मयस्सर-उप्लब्ध,  सहरा-रेगिस्तान
रचना -जयप्रकाश ,जय २८ अप्रैल २०२१ 


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