Tuesday, March 23, 2021

!! मुज़्ज़फ़र नगर हो गया !!




बिन  परिंदों  के  जैसे  सजर  हो गया !
ऐसा  उजड़ा  मुज़्ज़फ़र नगर हो गया !!१ 

क्या  जुरम  था हमारा  ख़बर ही नहीं 
देखते    देखते   मैं   बेघर    हो  गया !!२ 
ऐसी   आंधी  चली    आशियाने  उड़े 
ज़िन्दगी  का नगर  दर  बदर हो गया !!३ 

भाई  भाई  बने  जानी   दुश्मन  यहाँ 
साथ जीना और मरना दूभर हो गया !!४ 
सो  गए मौत  के कितने  आग़ोश में 
इन  हवाओं  में ऐसा   ज़हर हो गया !!५ 

वो  सवरती   रही   सैफई  की  तरह 
मैं उजड़कर  यहाँ खंडहर  हो   गया !!६ 
रचना-जयप्रकाश ,जय ! १३ सितम्बर २०१३ 

सजर-पेड़ 

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