जंग-ए-मैदां में कृष्ण अर्जुन को ये समझाते हैं I
आत्मा मरती नहीं जिस्म बदल जाते हैं II१
कृष्ण न होते तो अंज़ाम और ही होता ,
क्यूँकि अर्जुन के क़दम ख़ूब डगमगाते हैं II२
जिस्म लेता है जनम जिस्म फ़ना होता हैं,
खिलौने मिट्टी के मिट्टी में ही मिल जाते हैं II३
ना कोई भाई , ना बेटा , ना भतीजा ना गुरू ,
कृष्ण आँखों पे पड़े पर्दे सब हटाते हैं II४
कोई राजा गर अँधा हो तो क्या होता है ,
उसके बच्चे उसके हाथों से निकल जाते हैं II५
भीष्म के प्रण ही ज़ंजीर बनी पाँवों की,
चाह कर भी वो कुछ नहीं कर पाते हैं II६
उगलियाँ कृष्ण पर उठें ना इसलिए शायद ,
शांति प्रस्ताव लेके कृष्ण ख़ुद ही जातें हैं II७
प्रेम के बस विदुर घर साग खा के लौट आये ,
कृष्ण दुर्योधन का पकवान नहीं खातें हैं II८
ये ज़माना उस ज़माने से है कहीं बेहतर ,
ना हो इंसाफ तो हम सड़कों पर उतर जाते है II९
बड़ी कुर्बानियाँ देकर ये दिन कमाए हैं ,
अपना राजा आज खुद ही हम बनाते हैं II१०
रचना- जयप्रकाश ,जय १२-०१ -२०२१
Bahut khoob
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