Sunday, January 17, 2021

II जिस्म बदल जाते हैं II

 









जंग-ए-मैदां में कृष्ण  अर्जुन  को ये समझाते हैं I
आत्मा    मरती    नहीं   जिस्म   बदल   जाते हैं  II१ 
कृष्ण  न   होते    तो    अंज़ाम  और  ही   होता ,
क्यूँकि  अर्जुन   के  क़दम   ख़ूब  डगमगाते  हैं  II२ 

जिस्म   लेता   है  जनम   जिस्म  फ़ना  होता हैं, 
खिलौने   मिट्टी   के   मिट्टी  में ही मिल जाते हैं  II३ 
ना कोई  भाई , ना बेटा , ना  भतीजा  ना गुरू ,
कृष्ण    आँखों    पे   पड़े   पर्दे   सब  हटाते  हैं  II४ 

कोई   राजा  गर   अँधा  हो  तो  क्या  होता  है ,
उसके  बच्चे  उसके  हाथों  से निकल  जाते हैं  II५ 
भीष्म  के   प्रण   ही  ज़ंजीर  बनी   पाँवों   की, 
चाह  कर  भी    वो   कुछ   नहीं   कर पाते  हैं  II६ 

उगलियाँ  कृष्ण  पर  उठें ना इसलिए शायद ,
शांति  प्रस्ताव   लेके  कृष्ण  ख़ुद   ही जातें हैं  II७ 
प्रेम के बस विदुर घर साग खा के लौट आये ,
कृष्ण  दुर्योधन  का  पकवान  नहीं  खातें   हैं  II८ 

ये   ज़माना  उस  ज़माने  से  है  कहीं   बेहतर ,
ना हो इंसाफ तो हम सड़कों पर उतर जाते है  II९ 
बड़ी  कुर्बानियाँ   देकर  ये   दिन   कमाए   हैं ,
अपना  राजा  आज   खुद  ही   हम  बनाते हैं II१० 

रचना- जयप्रकाश ,जय  १२-०१ -२०२१ 


  


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