Thursday, January 21, 2021

II उस पार का नज़ारा II

 









जो   भी   चला  गया ,  वो  दुबारा  नहीं   दिखता I
इस  पार  से उस  पार का,  नज़ारा नहीं दिखता II १ 

उस दुनियाँ की इस दुनियाँ में, बातें हैं बहुत ख़ूब, 
मिलती हैं कहाँ दोनों, वो  किनारा  नहीं दिखता II २ 

यहाँ    दूसरों   के  ऐब , देखने  में   सब   माहिर ,
खुद का किसी को नुक़्स-ए-इदारा नहीं दिखता II ३ 

औरों  पे  उँगलियाँ  तो  उठा  देते  हैं  सब  लोग ,
कुछ उँगलियों का लेकिन इशारा नहीं  दिखता  II
४ 

झूठोँ     का     आजकल    जमाना    है   दोस्तोँ ,
सच  बोलने  वालों   का   गुज़ारा   नहीं  दिखता  II ५ 

जब  तक  ना   मिले  कुर्सी, सभी दोस्त दिखें हैं ,
मिलते  ही   कुर्सी  कोई , हमारा  नहीं   दिखता  II ६ 

बाज़ार  ने   लूटा  सरकार  - ए -  यार ने    लूटा ,
किसानों को सिवा जंग का सहारा नहीं दिखता II ७ 

रचना -जयप्रकाश ,जय २१/०१/२०२१ 

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