इस पार से उस पार का, नज़ारा नहीं दिखता II १
उस दुनियाँ की इस दुनियाँ में, बातें हैं बहुत ख़ूब,
मिलती हैं कहाँ दोनों, वो किनारा नहीं दिखता II २
यहाँ दूसरों के ऐब , देखने में सब माहिर ,
खुद का किसी को नुक़्स-ए-इदारा नहीं दिखता II ३
औरों पे उँगलियाँ तो उठा देते हैं सब लोग ,
कुछ उँगलियों का लेकिन इशारा नहीं दिखता II ४
झूठोँ का आजकल जमाना है दोस्तोँ ,
सच बोलने वालों का गुज़ारा नहीं दिखता II ५
जब तक ना मिले कुर्सी, सभी दोस्त दिखें हैं ,
मिलते ही कुर्सी कोई , हमारा नहीं दिखता II ६
बाज़ार ने लूटा सरकार - ए - यार ने लूटा ,
किसानों को सिवा जंग का सहारा नहीं दिखता II ७
रचना -जयप्रकाश ,जय २१/०१/२०२१
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