राम जिसके लिए रावण से उलझ जाते हैं I
उसी सीता को एक तंज पे ठुकराते हैं II
उस ज़माने में भी आया था ज़माना आगे ,
जिसके आगे श्रीराम जी झुक जाते हैं II
किसी की आबरू से बढ़कर कुल की मर्यादा ,
राम जिसके लिए इस हद तक गुज़र जाते हैं II
परीक्षा अग्नी की देकर भी ना बच सकीं सीता,
पुरुष पर आज भी कहाँ उंगलियां उठाते हैं II
रचना -जयप्रकाश ,जय
०९/०१/२०२१
वाहवा!
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