Friday, December 25, 2020

II यारी नहीं लगती II











मंज़िल   कोई   भी  देर  तक प्यारी  नहीं लगती  I
मन  को  किसी  भी  शय से  यारी  नहीं लगती II १ 

कन्धे   पर   मेरे   बोझ   ज़िम्मेदारिओं   का अब   ,
ये    जिंदगी   हमें   अब  हमारी   नहीं   लगती II २ 

मेरा   क़सूर   था    जो     हम    यूँ     ज़ुदा   हुए ,
इसमें  कोई   गलती अब  तुम्हारी नहीं  लगती II ३ 

मेरा   मशीहा  कोई   फ़रिश्ते   से   नहीं   कम ,
उसको  किसी  तंज  की चिंगारी  नहीं  लगती  II ४ 



इस  बार  पड़ा   पाला   जाबाज़   किसानों  से   ,
कैसे  लड़ा   जाये  कुछ   तैयारी  नहीं   लगती II ५ 

तुम  शेर  तो   ये     भी     सवाशेर   हैं   जानी ,
झुक  जायेंगे   ऐसी   तो  लाचारी  नहीं लगती II ६ 

निज़ाम -ए -ग़ुरूर ऐसा देखा ना   कभी पहले ,
अब की जुबान  इसकी  सरकारी नहीं लगती II ७ 

रचना -जयप्रकाश ,जय 
२५/१२/२०२० 


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