चौकीदार महलों में बिहरे ,सड़कों पर सोये किसान II
क्या यही है हिंदुस्तान II
मांगे नहीं जो ,वो देने की है ज़िद ,
अपनी मांग तो , बिल्कुल राशिद ,
किस गलती की सज़ा दिया है ये भगवान II
क्या यही है हिंदुस्तान II
कुछ थे वादे , करतें कुछ हैं ,
कहा जाय कुछ, सुनते कुछ हैं ,
भभिष्य के सपने दिखलाकर छीन लिया वर्तमान II
क्या यही है हिंदुस्तान II
अपनी पीड़ा किसे सुनाएँ ,
सरकारें बस ख्वाब दिखाएँ ,
मज़बूरी बन जाती है लेना अपनी जान II
क्या यही है हिंदुस्तानी II
झूठी कस्में झूठे वादे,
देख लिए सब नेक इरादे ,
आपदा में अवसर का, मिला अनोखा ज्ञान II
क्या यही है हिंदुस्तान II
रचना -जयप्रकाश ,जय २२ /१२/२०२०
No comments:
Post a Comment