Sunday, November 29, 2020

II जाग उठा है किसान II















जो   मांगा   वो  मिला   नहीं ,  बने   रहे  अन्ज़ान I

सिंहासन   की   खैर  नहीं , जाग उठा है किसान II १ 


शहर  शहर  ,गाँव   गॉँव   चर्चा  एक   ही बरपा ,

दिल्ली  के दरवाज़े पर जा  बैठा, पूरा  हिंदुस्तान  II २ 


भूले   सब    अपने    वसूल ,   तोड़ी   सब मर्यादा ,

कुर्सी की  खातिर रख  दी,  गिरवी  अपनी आन II ३  


सत्ता   का   अपना  चरित्र  है,   कोई  आए   जाए, 

लेकिनआंदोलन तो बस है जिन्दा कौमों की शान II४ 


बिना  लड़े ,अधिकार यहाँ,  कभी नहीं मिलता है ,

अपने  ही  लोगों  से  लड़ना काम नहीं आसान II ५ 

रचना -जय प्रकाश ,जय  २९/११ /2020 

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