जो मांगा वो मिला नहीं , बने रहे अन्ज़ान I
सिंहासन की खैर नहीं , जाग उठा है किसान II १
शहर शहर ,गाँव गॉँव चर्चा एक ही बरपा ,
दिल्ली के दरवाज़े पर जा बैठा, पूरा हिंदुस्तान II २
भूले सब अपने वसूल , तोड़ी सब मर्यादा ,
कुर्सी की खातिर रख दी, गिरवी अपनी आन II ३
सत्ता का अपना चरित्र है, कोई आए जाए,
लेकिनआंदोलन तो बस है जिन्दा कौमों की शान II४
बिना लड़े ,अधिकार यहाँ, कभी नहीं मिलता है ,
अपने ही लोगों से लड़ना काम नहीं आसान II ५
रचना -जय प्रकाश ,जय २९/११ /2020
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