मेरी तन्हाई का मज़ाक उड़ाने आये I
मैं ये समझा की बहारों के ज़माने आये II 1
लुट गया सब ,बर्बाद हो गया जब मैं ,
तब कही जा के मेरे होश ठिकाने आये II 2
मैं लुटाता रहा खुशियाँ फ़क़त ज़माने में ,
मेरे हिस्से में बस अश्कों के ख़ज़ाने आये II 3
ये उनकी ज़िद तो मै भी वसूल का पक्का ,
ज़रूर जाऊगा मग़र खुद वो बुलाने आये II 4
पाप धुलने में आँचल ही कर लिया मैला ,
ऐसे ही नहीं लोग गंगा में नहाने आये II 5
खुदा को माना ,खुदा की नहीं माना,जय
बुझे चरागों से अधेरों को मिटाने आये II 6
रचना -जयप्रकाश ,जय [२०/११/२०२०]
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