जमीं का अपना भले ही, हवा पानी है I
जिंदगी लेकिन सूरज की मेहरबानी है II 1
ये चाँद तारे जमीं , सब अपने रस्ते ,
जरूर इनपे किसी की निगेहबानी है II 2
जिन्दा रहना अब आगे , मुहाल लगता है,
हवा ही बाकी , बिकने लगा अब पानी है II 3
चन्द वादे जो , कब के हो गए जुमले,
उन्ही जुबान से , नये वादे ,बड़ी हैरानी है II 4
इधर उधर की न जाने, किधर की बातें,
काम की बात जो आये तो, आना कानी है II 5
हमारे दौर में, मोबाइल ना कम्प्यूटर था,
सबक ज़रूरी जो , आज भी जुबानी है II 6
बदन तो मिट्टी का, मिट्टी में ही मिलेगा जय ,
मगर इस रूह की, मंजिल तो आसमानी है II 7
मुफ्लिशी का इतना मज़ाक ठीक नहीं ,
उनका खून खून , हमारा खून पानी है II 8
रचना -जयप्रकाश ,जय {१४/११/२०२०}
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