Monday, June 29, 2020

चश्मे का धन्धा.....



नहीं    काम  आसान   करता   ये  बंदा  I
अन्धों   की  नगरी  है  चश्मे   का  धन्धा  II

भले कुछ कहो काम सबसे है मुश्किल ,
यूँ  ही  नहीं  लगता  गले  का  ये फन्दा II
ये  कैसी  बग़ावत  ये  क्या  दिल्लगी है ,
जिसने  भी  खेला  हो  है    खेल  गन्दा II

बनाते    बनाते    ये    दुनिया     बनाई ,
जिधर  देखिये    उधऱ      गोरखधंधा II
ये मसला  बिल्कुल समझ के है बाहर ,
धरम  के  नाम पर  लाखों   का  चन्दा II
अपनी   मुसीबत   हम  खुद  हैं बनाते ,
समझ  में जो  आये तो  जीवन सुगन्धा II

चेहरे   पे   रौनक   उन्हीं   के  सदा है ,
दिल  जिसका  अक्सर  रहता सुनन्दा II

रचना- जयप्रकाश  विश्वकर्मा
२७जून 2020

सुगन्घा - सुगन्धित 
सुनन्दा - अच्छा या सुन्दर स्वाभाव  वाला  

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