Friday, June 26, 2020

मिट्टी में कुछ बात है......




















चराग     हूं     मक़सद  हमारा   साफ़  है I
हवा    यूँ      ही        मेरे       ख़िलाफ़   है II

पतंगें     प्यार     में    हैं       चरागों      के ,

जलाना     मगर    कहॉं    का इन्साफ़   है II

वो    मंजिल    पर    पहुँचता    ही कब है ,

जो ख़यालो में बस  रस्तों का लेता नाप है  II

जतन  कुछ   भी   कर  बचना   नामुम्किन ,

सबको  होना एक दिन सुपुर्द -ए - ख़ाक है II

वक्त   आ   गया  सामने  आईना बनकर ,

आज वो  सच  दिखाए  तो   नाइंसाफ  है II

उसने  क्या  ख़ूब  हवा  का रुख़  मोड़ा है ,

ओ गलतियां  करता रहता  मगर माफ़ है II

इतनी  महगाई  की  जैसे  निचोड़   डाला 

जिन्दा  रहना  लगता  है एक   सौगात  है II

मिटाने   की  हर    कोशिशें   हुई  नाक़ाम ,

जरूर  अपनी  इस मिट्टी में कुछ बात है II

रचना - जयप्रकाश विश्वकर्मा 
२४जून 2020 

सुपुर्द -ए - ख़ाक-  मिट्टी में मिलना 




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