Monday, June 22, 2020

रस्ता ख़राब है

जिंदगी  है  या  कोई    डरावना    ख़्वाब   है I
जिधर    से   भी    जाऊँ     रस्ता   ख़राब  है II

न हवाएँ चलती हैं न तेज बारिशों  का क़हर ,
सुना   है  शहर में  एक जानलेवा  अज़ाब  है II
पढ़ो  कितनी  भी   इधर    उधर    की  बातें ,
जिंदगी    से   बढ़कर  नहीं  कोई क़िताब है II

ओ   करम   अब    उंगलिओं    पे  गिनते है ,
जुर्म    का   जिनके   कुछ   नहीं   हिसाब हैII
लिए   फिरते   थे   एक चेहरे   पे कई  चेहरे ,
हद  तो   अब  एक  और   रुख़ पे नकाब है II

कभी   ठहर    खुद    की   तलाश  तो  कर ,
इसी   वज़ूद    में     हीरा    एक   नायाब है II


               रचना - जयप्रकश विश्वकर्मा 
                        १० जून 2020

अज़ाब -पीड़ा

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