अलम उठायें और सर झुकाएं ,
खैरियत चाहें तो चुप हो जाएँ II अलम - दुःख
सवाल उनसे नहीं जी तौबा ,
ओ जैसा चाहें हुकुम चलाएं II
कुर्बान होने का ही शौक है तो ,
जरा कभी उनसे नजर मिलाएं II
फ़क़त अंधेरों को है इजाज़त ,
दिए जलाने से बाज आएँ II
उन्हें सुने और मुँह बंद रखें ,
अपने मन की बातें नहीं सुनाएँ II
शीशे के घरों में रहने वालों ,
यूँ पत्थरों को नहीं सताएँ II
मेरे ही चरागों ने घर जलाया ,
ये सच है लेकिन किसे बताएं II
रचना -जयप्रकाश विश्वकर्मा
12 जून 2020
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