बादल फूल कली तितली छाँव धूप बन जाता है I
तू ही बस जो हर शै में घुल जाता है II 1
द्वैत अद्वैत दृश्य अदृश्य सब तू ही तू I
कण कण में तेरा ही परचम लहराता है II 2
खुद के होने का प्रमाण भी उसका है I
सत्य कही अपना कोई ठुकराता है II 3
सूरज की गर्मी और चॉंद की शीतलता I
कौन है जो हम पर यूँ नित बरसता है II 4
साध्य नहीं विचार बस साधन है I
ध्यान बरसता तब जब विचार गिर जाता है II 5
जो भी है ओ नहीं कभी नहीं हो सकता I
जीवन तो बस रूप बदलकर आता है II 6
नाव तुम्हारी पर पतवार है उसके हाथ I
वही है जो भव सागर पार लगता है II 7
नदिया झरने झील समन्दर उसके रूप I
वही सुदूर तारों में ज़श्न मनाता है II 8
योग ध्यान या सांख्य सभी रस्ते उसके I
मार्ग कोई भी हो उस तक पहुँचता है II 9
जीवन एक अनबुझी पहेली रही सदा I
जो सुलझाए वही बुद्ध बन जाता है II 10
रचना -जयप्रकाश विश्वकर्मा
१० जून 2020
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