जितने थे होशियार चन्द खुद झगड़ पडे ,
कोरोना से लड़ते लड़ते आपस में लड़ पडे II
मुसीबत के दौर में सियासत की ही गर्मी ,
आपस की रंजिशों से चमन ही ना जल पडे II
सियासत ने जिस तरह अपना रंग दिखाया ,
डर है अभी भी हालत हाथ से ना फिसल पडे II
डूबते को काश तिनके का सहारा ही मिलता
यूँ ही नहीं हम लोग घरोँ को निकल पड़े II
रचना -जयप्रकश विश्वकर्मा
20 मई 2020
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