समझ ना पाए वक्त का तक़ाज़ा ,
गरीब पुर का अमीर राजा II 1
चले तो थे बिल्कुल ही अकेले,
अब सोचते हैं लड़ेंगे साझा II 2
अर्थ का पहिया लुढ़क रहा था ,
डर है न बज जाये बैंड बाजा II 3
जेब से कुछ तो निकल न पाए ,
फ़कत लबों पे घरों को ना जा II 4
है ये हकीकत है दौर मुश्किल ,
एक एक टूटी सभी मर्यादा II 5
दिन में ही तारे दिखा दिया है ,
किसी को थोड़ा किसी को ज़्यादा II 6
किसी को कुछ भी समझ न आये ,
ना जाने उसका क्या है इरादा II 7
वतन सियासत में फँस न जाये ,
सब भूल बैठे हैं अपना वादा II 8
रचना -जयप्रकाश विश्वकर्मा
16 मई 2020
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