Sunday, May 17, 2020

वक्त का तक़ाज़ा


समझ   ना  पाए वक्त का तक़ाज़ा ,
गरीब   पुर   का    अमीर     राजा  II 1

चले   तो थे   बिल्कुल    ही अकेले, 
अब   सोचते  हैं     लड़ेंगे      साझा II 2

अर्थ   का  पहिया   लुढ़क  रहा था ,
डर  है न  बज  जाये  बैंड    बाजा  II 3

जेब  से   कुछ  तो  निकल न पाए ,
फ़कत  लबों  पे   घरों  को  ना जा II 4

है  ये   हकीकत  है दौर   मुश्किल  ,
एक   एक   टूटी    सभी    मर्यादा II 5

दिन   में ही    तारे  दिखा  दिया है ,
किसी को थोड़ा किसी को ज़्यादा II 6

किसी को कुछ भी समझ न आये ,
ना  जाने   उसका  क्या  है इरादा II 7

वतन  सियासत  में  फँस न  जाये ,
सब  भूल  बैठे   हैं    अपना  वादा II 8

रचना -जयप्रकाश विश्वकर्मा 
16 मई 2020 


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