एक तरफ राम राजधर्म तो निभाते हैं !
एक तरफ़ निजी रिश्तों से चूक जाते हैं !!
राम जिनके लिए रावण से उलझ जाते हैं,
उन्ही सीता को एक तंज़ पे ठुकराते हैं !!
रीत रघुकुल की रह जाये इसलिए राघव,
सिया लखन को ले वनवास चले जाते हैं !!
उधर तो राम जी वनवास चले जाते हैं,
इधर भरत जी कुछ समझ नहीं पाते हैं !!
भरत मनसूबे सारे जब समझ जाते हैं
अपनी ही माँ को क्या क्या नहीं सुनाते हैं !!
काट वनवास राम वापस घर तो आते हैं,
मगर आकर एक अज़ीयत से गुजर जाते हैं !!
लाज लोक की तब भी अहम् थी शायद,
जिसके आगे राम अपना सर झुकाते हैं !!
एक तरफ राम रावण को मात देते हैं,
एक तरफ़ एक दिन बच्चो से हार जाते हैं !!
रचना -जय प्रकाश, जय १५ अक्टूबर २०२१ v-1.1
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