!! तालीबान सभ्यताओं का नुक़सान !!
आतंक जिनका भी कारोबार है !
यक़ीनन सोच उनकी बीमार है !!
सोच तालिबानी जिन्दा है गर ,
यह सभ्यताओं की बड़ी हार है !!
भाग जाने की बेबसी है मग़र,
ना कश्ती ना ही पतवार है !!
अब तो मतलब की रहनुमाई है,
एक चेहरा में दो किरदार है !!
चाँद पर बस्तियाँ बसाने वालों,
जमीं से क्यूँ ना तुम्हे प्यार है !!
बिचारी जनता कहाँ जाये फ़िर ,
जहाँ का राजा खुद फ़रार है !!
लड़ाई अपनी जो नहीं लड़ते,
उनके हिस्से में तिरस्कार है !!
रचना -जय प्रकाश ,जय १७ अगस्त २०२१
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