आजकल फ़ोन भी बजता है तो डर जाता हूँ !
रोज अपनों से पिछड़ने की ख़बर पाता हूँ !!
बेबसी इस क़दर दिलों में घर बना बैठी ,
कि हर एक शख़्स को बेचारगी में पाता हूँ !!
हादसा अब किसी के साथ भी हो सकता है,
हौशला रोज़ मग़र खुद को दिये जाता हूँ !!
इधर उधर किधर भी अब शुकून नहीं ,
शहर तो शहर गांवों को डरा पाता हूँ !!
जंग लड़ने का यूँ गाँवों में इंतज़ाम कहाँ,
देख हालत अब गाँवो की सिहर जाता हूँ !!
खेल मौत का ना जाने चलेगा कब तक,
जिन्दगी को हर एक मायूस आज पाता हूँ !!
हिंदू मुस्लिम की सियासत पड़ गई भारी ,
मैं गुनहगार इस आवाम को बताता हूँ !!
तेरी मर्ज़ी के बिना पत्ता नहीं हिलता गर
तो तेरे निज़ाम पर भी अंगुलियाँ उठाता हूँ !!
रचना -जयप्रकाश ,जय ०८ मई २०२१
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