Saturday, February 13, 2021

!! जीवी- परजीवी !!











जीवी- परजीवी  का  मुहर, ऊपर  चिपकाया गया !
उनका इल्ज़ाम  की, किसानों को बरगलाया गया !!१ 

 
जुबाँ    खुली  तो  ना  जाने,  क्या  क्या  बोल  गए,  
शहादतों    पे   मग़र   अश्क   ना    बहाया   गया !!२ 
 
जो खुद भी आये  हैं , जिन  रास्तों से चल के यहाँ ,
आज रस्तों पर  उन , तोहमत  बड़ा  लगाया गया !!३ 

 
तुमसे पहले भी कोई, ख़ुद को ख़ुदा समझाता था, 
मगर  एक दिन उसको भी ,सबक़ सिखाया  गया !!४ 
 
जुबां   खुली   मगर   लब्ज़  तीर    बन   के  लगे ,
उनसे   ज़ख्मों   पर  मरहम  नहीं  लगाया   गया !!५ 

            रचना -जयप्रकाश ,जय १२-०२-२०२१  

 

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