Friday, December 4, 2020

IIवो फ़नकार हो गया II





  मालिक  निज़ाम का अब  सरमायादार  हो गया I
        भ्रष्टाचार  ही  सरकारों   का  शिष्टाचार  हो   गया II १ 


 गुलशन   में   कई    रंग  के      फूल क्या  खिले ,

        ये   भी  कई   लोगों    को     नागवार   हो  गया II २ 


 जिसका  था  ये   वादा   सच   के  साथ है चलना, 

    वो  आदमी  ही   झूठों   का   सरदार   हो  गया II ३ 


  एक  दिन  अचानक  वादे का  मतलब बदल गया, 

    भजिया  पकौड़े  तलना  ही   रोज़गार  हो गया II ४ 


वो  दिन   को  कहे   रात   सबने रात   कह  दिया ,

  इंकार  जो     किया    वो    गुनहगार   हो गया II ५ 


 शहरों    को   अपने   शान   पर  गुमान   बहुत  है ,

   नज़रों  में  इसके   गांव   ही  गंवार     हो  गया II ६ 


जो   कुछ  भी  मिला   है  मेरी   हैसियत   न   थी ,

 ऐ   जिंदगी    तेरा   मैं   कर्ज़दार    हो     गया II ७ 


 किसने    कहा    तुम्हे   की   आवाज़   है   अपनी ,

   धन्धा  फ़क़त   टीवी    और   अख़बार हो गया II ८ 

उसने    दिया    है  फ़न   सबको     कोई    ज़रूर ,
  जिसने  समझ   किया   वो  फ़नकार  हो गया II ९ 

रचना  -जयप्रकाश,जय 
[०१/१२/२०२० ]

सरमायादार-पूँजीपती 
नागवार-अमान्य , नाख़ुश 
फ़नकार-कलाकार 


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