मालिक निज़ाम का अब सरमायादार हो गया I
भ्रष्टाचार ही सरकारों का शिष्टाचार हो गया II १
गुलशन में कई रंग के फूल क्या खिले ,
ये भी कई लोगों को नागवार हो गया II २
जिसका था ये वादा सच के साथ है चलना,
वो आदमी ही झूठों का सरदार हो गया II ३
एक दिन अचानक वादे का मतलब बदल गया,
भजिया पकौड़े तलना ही रोज़गार हो गया II ४
वो दिन को कहे रात सबने रात कह दिया ,
इंकार जो किया वो गुनहगार हो गया II ५
शहरों को अपने शान पर गुमान बहुत है ,
नज़रों में इसके गांव ही गंवार हो गया II ६
जो कुछ भी मिला है मेरी हैसियत न थी ,
ऐ जिंदगी तेरा मैं कर्ज़दार हो गया II ७
किसने कहा तुम्हे की आवाज़ है अपनी ,
धन्धा फ़क़त टीवी और अख़बार हो गया II ८
उसने दिया है फ़न सबको कोई ज़रूर ,
जिसने समझ किया वो फ़नकार हो गया II ९
रचना -जयप्रकाश,जय
[०१/१२/२०२० ]
सरमायादार-पूँजीपती
नागवार-अमान्य , नाख़ुश
फ़नकार-कलाकार
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