धूल आँखों में झोंकना, अब आसान थोड़ी है I
पढ़ा लिखा ये, अंगूठा छाप किसान थोड़ी है II
है लोकशाही लेकिन, ग़ुरूर राजा का।
कुछ भी माँगोगे देदेंगे , लगान थोड़ी है II
सबको मालूम की , कौन है किसके पीछे ,
आवाम आज की इतनी, नादान थोड़ी है II
बिना बताए वो कर के, आ गया सौदा ,
हमारा घर है किराये का, माकन थोड़ी है II
खिलादो नींद की गोली और पता ना चले,
बेखुदी में इतना भी , हिंदुस्तान थोड़ी है II
कितने आएंगे और, आके चले जाएंगे ,
ये सियासत हमेसा की , दुकान थोड़ी है II
आज की मीडिया, लेने लगा सुपारी है,
उसके मुँह में अब, खुद की जुबान थोड़ी है II
रचना-जयप्रकाश ,जय
१०/१२/२०२०
Very nice
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