Thursday, December 10, 2020

II लगान थोड़ी है II













 

धूल आँखों में झोंकना, अब आसान थोड़ी है I
पढ़ा लिखा ये, अंगूठा छाप  किसान थोड़ी है II

है    लोकशाही   लेकिन,   ग़ुरूर  राजा का। 
कुछ  भी  माँगोगे   देदेंगे ,  लगान   थोड़ी  है  II

सबको  मालूम  की , कौन है  किसके  पीछे ,
आवाम  आज  की  इतनी,  नादान थोड़ी  है  II

बिना  बताए  वो  कर   के,  आ  गया  सौदा ,
हमारा घर  है  किराये  का, माकन थोड़ी है  II

खिलादो  नींद  की गोली  और पता ना चले, 
बेखुदी  में  इतना   भी ,  हिंदुस्तान  थोड़ी है  II

कितने    आएंगे  और,   आके   चले  जाएंगे  ,
ये  सियासत  हमेसा  की ,  दुकान  थोड़ी है  II

आज   की    मीडिया,  लेने   लगा  सुपारी है, 
उसके मुँह में अब, खुद की  जुबान  थोड़ी है  II

रचना-जयप्रकाश ,जय 
१०/१२/२०२०  

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