मुश्किलें आएगी ज़रूर घबराने का नई I
ये जिंदगी है डर जाने का नई II १
रूठती है तो रूठ जाये
इस दुनियां को सर पे चढ़ाने का नई II२
जो और भी मुश्किलें बढ़ा दे
सरकार ऐसी बनाने का नई II३
अपने भी गिरेबां में झांकना होगा
उँगलियाँ औरों पैर ही उठाने का नई II४
बात करने से बात बनती है
दर्द यूँ दिल में दबाने का नई II५
समझ के भी ना जो ना समझे
ज्यादा उसे समझाने का नई II६
दुश्मन और भी बन जायेगे
दोस्तों को आजमाने का नई II७
खुद के होने का सबब क्या है
बिना समझे मर जाने का नई II८
अफवाहें ऐसी फ़ैलाने का नई II९
छाँव चाहिए तो पेड़ लगाओ जाके
उँगलियाँ सूरज पे उठाने का नई II१०
रचना-जयप्रकाश ,जय
11,AUGUST 2020
No comments:
Post a Comment