क़त्ल किसने किया न हमने हुरूर देखे हैं I
पर उनके हाथ में खंजर ज़रूर देखे हैं II
सज़ा पाते हुए बड़े बेक़सूर देखे हैं II
हवा के साथ तो आसां है बुलंदी छूना ,
हवा थमते ही टूटते गुरूर देखे हैं II
गलत को गलत कहने में जिगर लगता है ,
आजकल हमने बड़े जीहुजुर देखेँ हैं II
नजर उसकी सबपे हो जरूरी है नहीं ,
नज़र उसपे सबकी ज़रूर देखें हैं II
रचना- जयप्रकाश विश्वकर्मा (जय)
0 ३-जुलाई 2020
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0 ३-जुलाई 2020
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