मुँह बंद रखा कीजिये सरकार नया है II
बिकने को हैं तैयार फ़क़त दाम लगाओ ,
सियासत की जमी पर लगा बाज़ार नया है II
हार के भी जितना सबके ना बस की बात ,
तुम नहीं समझोगे कारोबार नया है II
बिक जाते अब वसूल यहां कौड़ियों के भाव ,
कुछ भी खरीद लो ये बाजार नया है II
ये कौन है जो वक्त की आवाज बन रहा ,
शायद ये कोई अख़बार नया है II
रचना -जयप्रकाश ,जय
25 /0 7 /2020
No comments:
Post a Comment