Tuesday, July 21, 2020

ख़तरे का निशान













क़हर बरपा है नदियों  का तूफ़ान I
निगल  गए सब ख़तरे का निशान II
जमीं  ने  क्या  कह   दिया     ऐसा ,
ख़फ़ा  है   इस  क़दर    आसमान II
मुश्किलें   पहले  कम   तो   न  थी ,
जुर्म   यूँ  अच्छा  नहीं    भगवान II

रचना -जयप्रकाश, जय
२१/०७/2020 

1 comment:

  1. सुंदर .जमीं ने क्या कहा ऐसा - बढिया !

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