अधेरों को रौशनी से डराया गया I
जाके फिर सच से पर्दा हटाया गया II
मुफ़लिसी क्या बला जानने के लिये,
बारिशों में पतंगें उड़ाया गया II
कितनों को रास्ते से हटाया गया II
पहले एक पर परिंदों के काटे गये,
और तूफ़ान में फिर उड़ाया गया II
कद्र करना बड़ों को छोटों की भी ,
बात आधी ही हमको सिखाया गया II
लाख क़ोशिशों पर भी चन्द लम्हे,
वक्त की शाख से न चुराया गया II
फिर तो जुबाँ पर ही लग गए ताले,
आईना जब उनको दिखाया गया II
वोट से एक ज़्यादा नहीं आप हैं,
चन्द सालों में खुल के बताया गया II
पहले लोगों के कपड़े देखे गये,
बाद में उनके घर को जलाया गया II
अपने हक़ की लड़ाई न लड़ने लगो,
इसलिये हिन्दू मुस्लिम बनाया गया II
रचना -जयप्रकाश विश्वकर्मा
14 जुलाई 2020
मुफ़लिसी -ग़रीबी
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