Wednesday, July 15, 2020

आवाज दबाना है


यारों इस सियासत  का इतना  सा फसाना  है    I
आग भी  लगानी   है  मातम    भी  मनाना    है    II
कभी  झाक लिया  करिये अपने भी गिरेबां  में ,
इतना   भी  नहीं  अच्छा यूँ  शोर  मचाना     है   II
लोगों  की  कमाई  पर   पलते हैं  सिआसतदाँ ,
बारी   जब  अपनी  हो  ठेंगा   ही   दिखाना   है  II
हमने  इस  सियासत  के  कई   रंग  यहाँ देखे ,
ज़ख्म  भी देना  है  और  आँसू  भी   बहाना है  II
जब  इनकी  ज़रूरत   हो पैरोँ  में  गिर  पड़ते ,
जब  अपनी ज़रूरत हो फिर लाखों  बहाना  हैं  II
जय गई न अकड़ अब भी राजा ही समझते हैं ,
अब भी सावन्ती  युग   लोकशाही   बहाना   है  II
पहले  सी नहीं मीडिया  जो आवाज़ उठाएगी ,
इसका  तो असली  काम  आवाज   दबाना है   II

           रचना  -जयप्रकाश विश्वकर्मा ,जय 
                               १५/०७/2020 

                                                                       


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