Sunday, May 3, 2020

जाएँ किधर हुजूर









                                






मुफलिसी बनी  दुश्मन और सरकारें   मगरूर,
जिंदगी    लगी     दाव   पर  जाएँ किधर  हुजूर II 1

माना की मुसीबत   है  नहीं      अपनी    बनाई ,
आखों में    लिए  आँसू मीलों चलने को मजबूर II 2

एक- एक  कर  खोखले हो    गये   सभी  दावे ,
जाएँ  तो  कहां  जाएँ  मुसीबत  में  ये    मजदूर II 3

झूठा  अगर   लगे   तो    इतिहास     देख    ले ,
वक़्त  ने   तोडा   है   बड़े  बड़ों    का    गूरूर II 4

ये   कौन   सी    दुनियाँ   बनाने   चले   हैं  हम ,
थोड़ा   जो   समझना   तो     समझाइय  जरुर II 5

बे  दख़्ल करदो  मुझको चाहो तो  रिआसत से,
नापाक   पैसले   मुझे    बिलकुल   नहीं  मंजूर II 6

शीशे  के घर     में  रहके   पत्थर   से  दुश्मनी ,
ठोकर   कभी   लगी   तो  सब   होगा  चूर चूर II 7

निकला     था   बेचने   सच   वो    सरे  बजार ,
पर   झूठ   की    दुनियाँ   में हो  गया  मशहूर II 8

        रचना -जयप्रकश विश्वकर्मा ,डोम्बिवली 
                                           03 म  ई 2020 





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