मुफलिसी बनी दुश्मन और सरकारें मगरूर,
जिंदगी लगी दाव पर जाएँ किधर हुजूर II 1
माना की मुसीबत है नहीं अपनी बनाई ,
आखों में लिए आँसू मीलों चलने को मजबूर II 2
एक- एक कर खोखले हो गये सभी दावे ,
जाएँ तो कहां जाएँ मुसीबत में ये मजदूर II 3
झूठा अगर लगे तो इतिहास देख ले ,
वक़्त ने तोडा है बड़े बड़ों का गूरूर II 4
ये कौन सी दुनियाँ बनाने चले हैं हम ,
थोड़ा जो समझना तो समझाइय जरुर II 5
बे दख़्ल करदो मुझको चाहो तो रिआसत से,
नापाक पैसले मुझे बिलकुल नहीं मंजूर II 6
शीशे के घर में रहके पत्थर से दुश्मनी ,
ठोकर कभी लगी तो सब होगा चूर चूर II 7
निकला था बेचने सच वो सरे बजार ,
पर झूठ की दुनियाँ में हो गया मशहूर II 8
रचना -जयप्रकश विश्वकर्मा ,डोम्बिवली
03 म ई 2020
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