Sunday, April 14, 2024

गवाह नहीं है


ये  सोचना   गलत  है  कोई  राह नहीं   है !
हाँ चाह  नहीं  है जो अगर    राह नहीं   है !!

ऐसा भी नहीं है की अधेरों से सब गुलाम, 
ऐसा भी  नहीं की कोई   गुमराह  नहीं है !!

अच्छा है पांच सालों का है खेल सियासत, 
उम्र   भर   का  कोई   बादशाह  नहीं   है !!

तुम कुछ भी कहो लेकिन मेरा ये मानना,  
चोरों  के घर  चोरी  कभी  गुनाह नहीं है !!

वैसे  तो  उसका  क़त्ल सरे  आम हुआ है, 
अदालत  में मगर  एक भी  गवाह नहीं है !!

रचना-जय प्रकाश विश्वकर्मा ,मुंबई 

 

  

 

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