ये सोचना गलत है कोई राह नहीं है !
हाँ चाह नहीं है जो अगर राह नहीं है !!
ऐसा भी नहीं है की अधेरों से सब गुलाम,
ऐसा भी नहीं की कोई गुमराह नहीं है !!
अच्छा है पांच सालों का है खेल सियासत,
उम्र भर का कोई बादशाह नहीं है !!
तुम कुछ भी कहो लेकिन मेरा ये मानना,
चोरों के घर चोरी कभी गुनाह नहीं है !!
वैसे तो उसका क़त्ल सरे आम हुआ है,
अदालत में मगर एक भी गवाह नहीं है !!
रचना-जय प्रकाश विश्वकर्मा ,मुंबई
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