Tuesday, August 4, 2020

भरा पात्र भी ख़ाली है..


मंदिर  तो   बनेगा   इसकी   सबको   खुशहाली  है I
मगर  घर्म के  नाम पर न सियासत  थमने वाली है II
क्यूँ न हो दिवाली फिर जो ख़त्म दूसरा बनवास हुआ ,
लेकिन क्या  उन  नगरों का जिनमे फ़ैली बदहाली है II
जिन्होंने  ये   संग्राम   लड़ा   और   बड़े   ही तंज़ सहे  ,
उन लोगों की  जगह क्यूँ  किल्कुल खाली  खाली है II
जब भी तुम राम पुकारो सीता जी  का नाम पुकारो,
बिन सीता के राम का मतलब भरा पात्र भी ख़ाली है II
उसकी  ना  कुछ  बात  करो अपनी धुन में   रहता है 
सावन  के  अंधे    को   दिखती   बस    हरियाली   है II
जिसके न हों   पैर   पड़े    आजतलक   उस  धरती  पर ,
लगता है आज  फिर बस  उसकी ही चलने  वाली है II
रचना -जयप्रकाश ,जय। 
4 AUGUST 2020 

2 comments:

  1. सावन का अंधे को दिखती हरियाली है । व्वा !

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