बेघऱ करने की सब रघुवर असफ़ल हुए प्रयास I
हे रघुनन्दन घर आ जाओ बहुत हुआ वनवास II
तारीख पर तारीख ही पाई पर न धीरज खोये,
कोट कचेहरी में वर्षों तक बहुत हुआ उपहास II
सब हैं बैठे पलक बिछाये और निहारे वाट ,
अब तो अपने नगर पधारो तुम हो सबकी आस II
ख़बर सुनी जब से आने की नैन हुए बेचैन ,
कमल नयन आ भी जाओ अब मां सीता के साथ II
हे करुणा के सागर गागर भर दो सबकी अबकी ,
अर्ज सुनो हे राघव अभी भी बड़े हैं हिय उदास II
हृदय विशाला दीन दयाला हे मर्यादा मूरत ,
जीवन से दुःख दूर करो प्रभु विनती करे ये दास II
मर्यादा की खातिर पहले भी बारह बरस गुजारे ,
सदियों बाद है ख़त्म हो रहा अब दूसरा वनवास II
31 JULY 2020
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