Friday, July 31, 2020

बहुत हुआ वनवास....





बेघऱ  करने की सब रघुवर असफ़ल  हुए प्रयास  I
हे रघुनन्दन  घर  आ जाओ  बहुत  हुआ वनवास II

तारीख  पर  तारीख  ही  पाई पर न धीरज खोये, 
कोट  कचेहरी  में  वर्षों  तक बहुत हुआ उपहास II

सब  हैं  बैठे  पलक  बिछाये   और  निहारे   वाट ,

अब तो अपने नगर पधारो  तुम  हो सबकी आस II

ख़बर   सुनी  जब  से  आने  की  नैन   हुए  बेचैन ,

कमल नयन आ भी जाओ अब मां सीता के साथ II

हे करुणा के सागर गागर भर दो सबकी अबकी ,

अर्ज  सुनो हे राघव  अभी भी बड़े हैं  हिय उदास II

हृदय  विशाला   दीन   दयाला  हे   मर्यादा  मूरत ,

जीवन से दुःख दूर करो प्रभु विनती  करे ये दास II


मर्यादा  की  खातिर  पहले भी बारह  बरस गुजारे ,

सदियों  बाद है ख़त्म हो रहा अब दूसरा वनवास II

रचना- जयप्रकाश विश्वकर्मा , जय 
31 JULY 2020








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