Sunday, April 26, 2020

जिगर लगता है






बिन परिंदों   कैसा    ये     सजर     लगता है  ,
तुम नहीं साथ   तो वीराना   सफर  लगता है II 1 

वही  गालियां  वही  रस्ते   वही   दिवरो  दर  ,
तुम नहीं   हो    तो बेगाना     शहर लगता है II 2 

जैसे हर   चीज   देखी    हो तेरी    आखों से  , 
तुम नहीं साथ तो अनजाना सा घर लगता है II 3 

ये गलत है   सच से   कोई    वाबस्ता    नहीं ,
लब पे लाना हो तो बड़ा ही जिगर लगता है  II 4 

या खुदा रहम   अब तेरा   सहारा है फ़क़त  ,
कर दे आबाद ये जो वीराना नगर लगता है II 5 

         
 रचना -जय प्रकाश विश्वकर्मा ,डोम्बिवली 


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