बिन परिंदों कैसा ये सजर लगता है ,
तुम नहीं साथ तो वीराना सफर लगता है II 1
वही गालियां वही रस्ते वही दिवरो दर ,
तुम नहीं हो तो बेगाना शहर लगता है II 2
जैसे हर चीज देखी हो तेरी आखों से ,
तुम नहीं साथ तो अनजाना सा घर लगता है II 3
ये गलत है सच से कोई वाबस्ता नहीं ,
लब पे लाना हो तो बड़ा ही जिगर लगता है II 4
या खुदा रहम अब तेरा सहारा है फ़क़त ,
कर दे आबाद ये जो वीराना नगर लगता है II 5
रचना -जय प्रकाश विश्वकर्मा ,डोम्बिवली
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